शारदीय नवरात्रा

nnnवर्ल्ड नाउ डेस्क। नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों – महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वतीया सरस्वती कि तथा दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक शारदीय नवरात्र होते हैं। इस वर्ष शारदीय नवरात्र 5 अक्टूबर 2013 से 13 अक्टूबर 2013 तक चलेंगे।
नवरात्र पूजा की शुरुआत प्रथम दिन घट स्थापना से की जाती है जिसे लोग कलश स्थापना भी कहते हैं। इस वर्ष घट स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 19 मिनट से 7 बजकर 14 मिनट तक है।
इस साल नवरात्रा कल से शुरू हो रहे हैं। इस दिन हस्त नक्षत्र, ऐन्द्र योग होगा। माता पर श्रद्धा व विश्वास रखने वाले व्यक्तियों के लिये यह दिन विशेष रहेगा। शारदीय नवरात्रों का उपवास करने वाले इस दिन से पूरे नौ दिन का उपवास विधि -विधान के अनुसार रख, पुन्य प्राप्त करेगें।
नौ दिन माता के नौ रुपों की आराधना
आश्विन मास में शुक्लपक्ष कि प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नौ दिन तक चलने वाला नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है। नव का शाब्दिक अर्थ नौ है। इसके अतिरिक्त इसे नव अर्थात नया भी कहा जा सकता है। शारदीय नवरात्रों में दिन छोटे होने लगते है मौसम में परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है। प्रकृति सर्दी की चादर में सिकुड़ने लगती है। ऋतु के परिवर्तन का प्रभाव जनों को प्रभावित न करे, इसलिये प्राचीन काल से ही इस दिन से नौ दिनों के उपवास का विधान है।
इस अवधि में उपवासक संतुलित और सात्विक भोजन कर अपना ध्यान चिंतन और मनन में लगा से स्वयं को भीतर से शक्तिशाली बना सकता है। ऐसा करने से उसे उतम स्वास्थय सुख के साथ पुन्य प्राप्त होता है। इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना का दिन भी कहा जाता है। नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना की जाती है। माता के इन नौ रुपों को हम देवी के विभिन्न रुपों की उपासना, उनके तीर्थो के माध्यम से समझ सकते है।
प्रमुख कथा
लंका युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। नि:स्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ह के स्थान पर क उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और करिणी का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में ह की जगह क करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।

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