Tuesday, October 1, 2013

नवरात्रि 2013 पर विशेष..............

नवरात्रि की प्रचलित कथाएं Popular Stories about

Navratri 

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 5 से 13 अक्टूबर तक है। धर्म शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि वास्तविक अर्थों में प्रकृति का उत्सव है। इन नौ दिनों में मां के विभिन्न स्वरूप हमें प्रकृति दर्शन के कई रहस्यों से अवगत कराते हैं। साथ ही यह रूप हमें अपने जीवन के लिए भी विभिन्न संदेश भी देते हैं। ऊपर ऑप्शन पर क्लिक कीजिए और जानिए नवरात्रि में किस दिन कौन सी देवी की पूजा की जाती है-...और पढ़ें

जानिए नवरात्रि में कैसे करते हैं घट स्थापना, ये हैं संपूर्ण विधि

 

जानिए नवरात्रि में कैसे करते हैं घट स्थापना, ये हैं संपूर्ण विधि
माता दुर्गा की आराधना के पर्व नवरात्रि में पहले दिन माता दुर्गा की प्रतिमा तथा घट की स्थापना की जाती है। इसके बाद ही नवरात्रि उत्सव का प्रारंभ होता है। माता दुर्गा व घट स्थापना की विधि तथा शुभ मुहूर्त का वर्णन इस प्रकार है-
पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी शक्ति के अनुसार बनवाए गए सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की विधिपूर्वक स्थापित करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति की प्रतिष्ठा करें।
मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वस्तिक और उसके दोनों कोनों में बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। पूजन सात्विक हो, राजस या तामसिक नहीं, इस बात का विशेष ध्यान रखें।
नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।

 

navratri_stories आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि के मध्य के समय को नवरात्रे के नाम से जाना जाता है. इन नवरात्रों का अन्य नवरात्रों की तुलना में अधिक महत्व होता है. इन नवरात्रों को शारदीय नवरात्रे भी कहा जाता है. वर्ष 2013 में ये नवरात्रे 5 अक्टूबर से शुरु होकर 13 अक्तूबर, तक रहेगें.

माता के उपवासक प्रतिपदा तिथि में ही स्नान, ध्यानादि से निवृ्त होकर, नौ दिनों के व्रत का संकल्प लेते है. प्रथम दिन कलश स्थापना की जाती है. इसके बाद प्रतिदिन ज्योति जलाकर, षोडशोपचार सहित माता की पूजा की जाती है. नवरात्रि के विषय में कई कथाएं प्रचलित है. कथाओं के माध्यम से नवरात्रे के महत्व को समझने का प्रयास करते है.

आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रे प्रारम्भ होते है, तथा पूरे नौ दिन रहने के बाद नवमी तिथि को समाप्त होते है. नवरात्रे अर्थात नौ+रात्रियां. प्रत्येक एक वर्ष में दो बार नवरात्रे आते है. इन दोनों नवरात्रों में भी आश्चिन मास के नवरात्रों का विशेष महत्व है.


नवरात्रों के विषय में कई कथाएं प्रचलित है. जिसमें कुछ कथाएं इस प्रकार है. Many Stories are Popular about Navratri. Some of them are-

एक पौराणिक कथा के अनुसार नवरात्रि में मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध करके देवताओं को उसके कष्टों से मुक्त किया था. एक बार की बात है, जब महिषासुर राक्षस के आंतक से सभी देवताओ भयभीत रहते थे. महिषासुर ने भगवान शिव की आराधना करके अद्वितीय शक्तियाम प्राप्त कर ली थी और तीनों देव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी उसे हराने मेम असमर्थ थे. उस समय सभी देवताओं ने अपनी अपनी शक्तियों को मिलाकर शक्ति दुर्गा को जन्म दिया. अनेक शक्तियों के तेज से जन्मी माता दुर्गा ने महिषासुर का वध कर सबके कष्टों से मुक्त किया.


नवरात्रि के विषय में एक अन्य कथा प्रचलित है. An another Popular Sory about Navratri

इसके अनुसार एक नगर में एक ब्राह्माण रहता था. वह मां भगवती दुर्गा का परम भक्त था. उसकी एक कन्या थी. ब्राह्मण नियम पूर्वक प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम किया करती थी. सुमति अर्थात ब्राह्माण की बेटी भी प्रतिदिन इस पूजा में भाग लिया करती थी. एक दिन सुमति खेलने में व्यस्त होने के कारण भगवती पूजा में शामिल नहीं हो सकी. यह देख उसके पिता को क्रोध आ गया है. और क्रोधवश उसके पिता ने कहा की वह उसका विवाह किसी दरिद्र और कोढी से करेगा.

पिता की बाते सुनकर बेटी को बडा दु:ख हुआ, और उसने पिता के द्वारा क्रोध में कही गई बातों को सहर्ष स्वीकार कर लिया. कई बार प्रयास करने से भी भाग्य का लिखा नहीं बदलता है. अपनी बात के अनुसार उसके पिता ने अपनी कन्या का विवाह एक कोढी के साथ कर दिया है. सुमति अपने पति के साथ विवाह कर चली गई. उसके पति का घर न होने के कारण उसे वन में घास के आसन पर रात बडे कष्ट में बितानी पडी.

गरीब कन्या की यह दशा देखकर माता भगवती उसके पूर्व पुन्य प्रभाव से प्रकट हुई और सुमति से कहने लगी की "है कन्या मैं तुमपर प्रसन्न हूं" मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं मांगों क्या मांगती हों. इस पर सुमति ने कहा कि आप मेरी किस बात पर प्रसन्न हों, कन्या की यह बात सुनकर देवी कहने लगी की मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुन्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं, तू पूर्व जन्म में भील की स्त्री थी, और पतिव्रता थी.

एक दिन तेरे पति भिल द्वारा चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड कर जेलखाने में कैद कर दिया था. उन लोगों ने तेर्रेऔर तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया था. इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिता इसलिये नौ दिन तक नवरात्र का व्रत का गया.

है ब्राह्माणी, उन दिनों में जो व्रत हुआ, उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर आज मैं तुम्हें मनोवांछित वरदान दे रही हूँ, कन्या बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न है तो कृ्पा करके मेरे अति के कोढ दुर कर दिजियें. माता के कन्या की यह इच्छा शीघ्र पूरी कर दी. उसके पति का शरीर माता भगवती की कृ्पा से रोगहीन हो गया.


रामायण में नवरात्रों का वर्णन Description about Navratri in Ramayana

रामायण के एक प्रसंग के अनुसार भगवान श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान व समस्त वानर सेना द्वारा आश्चिन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिनों तक माता शक्ति की उपासना कर दशमी तिथि को लंका पर आक्रमण प्राप्त किया था. तभी से नवरात्रों में माता दुर्गा कि पूजा करने की प्रथा चल आ रही है. 
दुर्गा पूजा-पाठ की विधि
नवरात्रि में दुर्गा पूजा-पाठ की यह विधि यहां संक्षिप्त रूप से दी जा रही है। नवरात्रि आदि विशेष अवसरों पर तथा शतचंडी आदि वृहद् अनुष्ठानों में विस्तृत विधि का उपयोग किया जाता है। उसमें यन्त्रस्थ कलश, गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तर्षि, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी, 50 क्षेत्रपाल तथा अन्यान्य देवताओं की वैदिक विधि से पूजा होती है। अखंड दीप की व्यवस्था की जाती है।

देवी प्रतिमा की अंग-न्यास और अग्न्युत्तारण आदि विधि के साथ विधिवत्‌ पूजा की जाती है। नवदुर्गा पूजा, ज्योतिःपूजा, बटुक-गणेशादिसहित कुमारी पूजा, अभिषेक, नान्दीश्राद्ध, रक्षाबंधन, पुण्याहवाचन, मंगलपाठ, गुरुपूजा, तीर्थावाहन, मंत्र-खान आदि, आसनशुद्धि, प्राणायाम, भूतशुद्धि, प्राण-प्रतिष्ठा, अन्तर्मातृकान्यास, बहिर्मातृकान्यास, सृष्टिन्यास, स्थितिन्यास, शक्तिकलान्यास, शिवकलान्यास, हृदयादिन्यास, षोडशान्यास, विलोम-न्यास, तत्त्वन्यास, अक्षरन्यास, व्यापकन्यास, ध्यान, पीठपूजा, विशेषार्घ्य, क्षेत्रकीलन, मन्त्र पूजा, विविध मुद्रा विधि, आवरण पूजा एवं प्रधान पूजा आदि का शास्त्रीय पद्धति के अनुसार अनुष्ठान होता है।

इस प्रकार विस्तृत विधि से पूजा करने की इच्छा वाले भक्तों को अन्यान्य पूजा-पद्धतियों की सहायता से भगवती की आराधना करके पाठ आरंभ करना चाहिए।

साधक स्नान करके पवित्र हो, आसन-शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके शुद्ध आसन पर बैठे, साथ में शुद्ध जल, पूजन-सामग्री और श्री दुर्गा सप्तशती की पुस्तक रखें। पुस्तक को अपने सामने काष्ठ आदि के शुद्ध आसन पर विराजमान कर दें। ललाट में अपनी रुचि के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा बांध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व-शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें।

उस समय निम्नांकित चार मंत्रों को क्रमशः पढ़ें -
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा

Durga Puja method

तत्पश्चात्‌ प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करे, फिर 'पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ' इत्यादि मंत्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें। संकल्प करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें, योनि-मुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करे, फिर मूल नवार्ण मंत्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें।

इसके बाद शापोद्वार करना चाहिए। इसके अनेक प्रकार हैं। 'ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा' - इस मंत्र का आदि और अन्त में सात बार जप करे। यह शापोद्वारमन्त्र कहलाता है।

इसके अनन्तर उत्कीलन-मंत्र का जप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है - 'ॐ ह्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।' इसके जप के पश्चात्‌ आदि और अन्त में सात-सात बार मृत-संजीवनी विद्या का जप करना चाहिए।

इस प्रकार शापोद्धार करने के अनंतर अन्तर्मातृकाबहिर्मातृका आदि न्यास करें, फिर भगवती का ध्यान करके रहस्य में बताये अनुसार नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करें, इसके बाद छः अंगो सहित दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाता है।

कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य - ये ही सप्तशती के छः अंग माने गए हैं। उनके क्रम में भी मतभेद है। चिदम्बर संहिता में पहले अर्गला, फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है। किंतु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक-संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति तथा अंत में कीलक का उच्चारण होता है। उसी प्रकार यहां भी पहले कवच रूप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अंत में की‍लक रूप कीलक का क्रमश: पाठ होना चाहिए।
दुर्गा आराधना का महत्व
Navratri


जगत्‌ की उत्पत्ति, पालन एवं लय तीनों व्यवस्थाएं जिस शक्ति के आधीन सम्पादित होती है वही पराम्वा भगवती आदि शक्ति हैं। इन्हीं के अनन्त रूप हैं लेकिन प्रधान नौ रूपों में नवदुर्गा बनकर आदि शक्ति सम्पूर्ण पृथ्वी लोक पर अपनी करूणा की वर्षा करती है, अपने भक्त और साधकों में अपनी ही शक्ति का संचार करते हुए, करूणा एवं परोपकार के द्वारा संसार के प्राणियों का हित करती है।

प्रथम नवरात्रि को मां की शैलपुत्री रूप में आराधना की जाती है। वस्तुतः नौ दुर्गा के रूप माता पार्वती के हैं। दक्ष प्रजापति के अहंकार को समाप्त कर प्रजापति क्रम में परिवर्तन लाने एवं अपने सती स्वरूप का संवरण कर पार्वती अवतार क्रम में नौ दुर्गा की नौ रूप मूर्तियों की उपासना का पर्व है नवरात्रि।

यद्यपि शक्ति अवतार को दक्ष यज्ञ में अपने योग बल से सम्पन्न करने से पूर्ण भगवती सती जी ने भगवान शंकर के समक्ष अपनी दस महाविधाओं को प्रकट किया तथा उनके सती जी के दग्ध छाया छाया देह के अंग-प्रत्यंगो से अनेक शक्ति पीठों में आदि शक्ति प्रतिष्ठित होकर पूजी जाने लगी पार्वती रूपा भगवती के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री की आराधना से साधक की योग यात्रा की पहली सीढ़ी बिना बाधाओं के पार हो जाती है।

योगीजन प्रथम नवरात्रि की साधना में अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित शक्ति केंद्र की जागृति मे तल्लीन कर देते हैं।

नवरात्रि आराधना, तन मन और इन्द्रिय संयम, साधना की उपासना है, उपवास से तन संतुलित होता है। तन के सन्तुलित होने पर योग साधना से इंद्रियां संयमित होती है। इन्द्रियों के संयमित होने पर मन अपनी आराध्या मां के चरणों में स्थिर हो जाता है।

शक्ति उपासना के महत्व के बारे में कहा जाता है कि जिसने अपने मन को स्थिर कर लिया वह संसार चक्र से छूट जाता है। संसार में रहते हुए उसके सामने कोई भी सांसारिक विध्न-बाधाएं टिक नहीं सकती।

वह भगवती दुर्गा के सिंह की तरह बन जाता है, ऐसे साधक भक्त एवं योगी महापुरुष को दर्शन मात्र से सिद्धियां मिलने लगती हैं। परंतु सावधान रहना चाहिए की सांसारिक उपलब्धि रूपी सिद्धियां संसार में भटका देती हैं। अतः उपासक एवं साधकों को यह भी सावधानी रखनी होती है कि उनका लक्ष्य केवल मां दुर्गा के श्री चरणों में समर्पण है और कुछ नहीं।

नवदुर्गा माता की स्तुति

भगवान्‌ श्रीकृष्ण के मुख से माता की स्तुति

Navratri Festival


नवदुर्गा बारे में स्वयं भगवान्‌ श्रीकृष्ण माता की स्तुति में कहते हैं-

त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥

कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्‌।
परब्रह्मास्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥

तेजःस्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रहा।
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्पर॥

सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमंगलमंगला॥।

तुम्हीं विश्वजननी मूल प्रकृति ईश्वरी हो, तुम्हीं सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिका बन जाती हो। यद्यपि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो तथापि प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो।

तुम परब्रह्मस्वरूप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो। परम तेजस्वरूप और भक्तों पर अनुग्रह करने हेतु शरीर धारण करती हो। तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वाधार एवं परात्पर हो। तुम सर्वाबीजस्वरूप, सर्वपूज्या एवं आश्रयरहित हो। तुम सर्वज्ञ, सर्वप्रकार से मंगल करने वाली एवं सर्व मंगलों की भी मंगल हो।

नवरात्रि पर्व पर श्रद्धा और प्रेमपूर्वक महाशक्ति भगवती देवी की उपासना करने से यह निर्गुण स्वरूपा देवी पृथ्वी के सारे जीवों पर दया करके स्वयं ही सगुणभाव को प्राप्त होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश रूप से उत्पत्ति, पालन और संहार कार्य करती हैं। 

नवरात्रि पर्व : दैवीय शक्ति का अवतरण

Navratri India
हमारे वेद, पुराण व शास्त्र साक्षी हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्ति ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्ति का अवतरण हुआ।

इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति मां जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं।

उन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनःप्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया।

Navratri Festival 2012
शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु संपूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से बड़ी श्रद्घा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसी नवरात्रि सुख और समृद्घि देती है। सनातन संस्कृति में नवरात्रि की उपासना से जीव का कल्याण होता है। भगवती राजराजेश्वरी की विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होगा, घर-घर घट-कलश स्थापित किए जाते हैं।

इसके साथ ही अन्योआश्रित जीवन की रीढ़ कृषि व जीवन के आधार प्राणों की रक्षा हेतु इन दोनों ही ऋतुओं में लहलहाती हुई फसलें खेतों से खलिहान में आ जाती हैं। इन फसलों के रख-रखाव व कीट-पतंगों से रक्षा हेतु, घर-परिवार को सुखी व समृद्घ बनाने तथा कष्टों, दुःख-दरिद्रता से छुटकारा पाने हेतु लोग नौ दिनों तक सफाई तथा पवित्रता को महत्व देते हुए देवी की आराधना व हवन, यज्ञादि क्रियाएं करते हैं।


II  Navratri Poojan and Katha II
Jai Mata Di
Navratri, the Festival of Nine Nights, is celebrated in honor of goddesses Durga, Lakshmi, and Saraswati.

             Navratri pooja Viddhi and Vidhan  in Hindi text 
                 Navratri Vrat Katha in Hindi text 
                 Navratri Vrat Katha in Hindi text
Navratri Vrat Katha in Hindi text
                                    
                                 Navratri Katha in Hindi

II Durga Chalisa II
श्री दुर्गा चालिसा
Durga Chalisa Jai Mata Di



Durga Chalisa

                 Durga Chalisa in Hindi

               
                  Durga Chalisa in Hindi                                                                       
II Durgaji Ki Aarti II
                श्री दुर्गा जी की आरती
                   Durga ji ki Aarti 

 II Vaishno ji Ki Aarti II
वैष्णो माता आरती
              Vaishno ji Ki Aarti

                         Devi mantra                                                                           Navratri Greetings

Navratri Jyoti Kalash
नवरात्रि ज्योती कलश नवरात्रि के पावन पर्व का अखण्ड ज्योती कलश 
नवरात्रि ज्योती कलश 
 
Nine Forms of Goddess Durga Nine Goddesses worshipped during Navratri  


Nine Forms of Goddess Durga

माँ दुर्गा के नौ स्वरूप नवरात्रि के दौरान नौ देवियों की पूजा 
माँ दुर्गा के नौ स्वरूप

युगल डांडिया खेलते हुए दुर्गा माता को प्रसन्न करने के लिए युगल डांडिया खेलते हुए 
युगल डांडिया खेलते हुए
*जय माता दी *जय माता दी *जय माता दी*
शुभकामनाओं सहित:-अनिल कुमार 
शुक्ला,औरैया(उत्तर प्रदेश)

Vijayadashami Puja Time


Vijay Muhurat = 14:08 to 14:54
Duration = 0 Hours 46 Mins
Aparahana Puja Time = 13:22 to 15:40
Duration = 2 Hours 18 Mins
Vijayadashami 
Lord VishnuLord Vishnu 
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1 comment:

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